घटना:
रमण (काल्पनिक नाम) रात में अचानक निंद से उठा | उसके सिने में जलन हो रही थी | और थोडा सा दर्द भी हो रहा था | तभी उसे याद आया की, ‘उसके साथ काम करने वाले एक मित्र को ऐसे ही एक रात हार्ट अटैक आया था’ | रमण डर गया | उसकी दिल की धड़कन बढ़ने लगी | जबान सुखने लगी और हाथ पैर कांपने लगे | उसे लगा, “लगता है मुझे भी हार्ट अटैक आ गया है | ये शायद मेरे जिंदगी का आखरी दिन है |” अब उसे लगा सब कुछ ख़तम हो चुका है | उसकी हालत देखकर घरवालों ने तुरंत उसे अस्पताल में भरती किया | आय . सी . यू . में उसे निगरानी में रखा गया | उसके सारे तपास की , जाँच की गयी व सारे टेस्ट, ई. सी. जी., 2-D ECHO ईत्यादी रिपोर्ट नॉर्मल निकले | दो दिन दवाई देकर उसे वापस घर भेजा गया | अब रमण के मन में डर बैठ गया था की फिर से उसे उसी तरह का अटैक कभी भी आ जाएगा |
रमण एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर और दूसरे डॉक्टर से तिसरे डॉक्टर कंसल्ट कर कर के थक चुका था | उसके सारे रिपोर्ट नॉर्मल ही आ रहे थे |
क्या आपको लगता है की ये हार्ट की बिमारी है या मन की ?
जी हाँ | ये मन की बिमारी है ... जिसे हम कहते है ... पैनिक डिसऑर्डर !
प्र. ये पैनिक डिसऑर्डर क्या होता है ?
उ. पैनिक डिसऑर्डर मन की ऐसी स्थिति होती है जिसमें घबराहट, वहम और डर बना रहता है |खास तौरसे जान जाने का डर या किसी बड़ी बीमारी का शिकार होने का डर| व्यक्ति में ये घबराहट के लक्षण कभी कभी अत्यंत तीव्र होने लगते है |
प्र. पैनिक डिसऑर्डर के लक्षण क्या होते है ?
उ. पैनिक डिसऑर्डर के सर्वसाधारण लक्षण समझने के हेतु से हम तीन भागों में विभाजीत कर सकते है |
(1) Panic Episode (पैनिक एपिसोड)
(2) Pre-Occupation (चिंता)
(3) Behaviour issues (बर्ताव में बदल)
प्र. पैनिक एपिसोड क्या होता है ?
उ. पैनिक एपिसोड कभी कभी अचानक शुरू होता है और कभी कभी किसी तनाव के वजह से शुरू
होता है | सबसे पहले व्यक्ति का अपने शरीर में होने वाली संवेदना के उपर ध्यान जाता है | जैसे की ‘सिने में दर्द’ या ‘दिल की धड़कन एकदम फ़ास्ट होना’| इस संवेदना को देख कर वह डर जाता है | उसे बुरे बुरे खयाल आने लगते है | उसे लगता है की उसे दिल का दौरा पड़ चुका है | अब जान चली जाने वाली है | इस विचार के साथ साथ “मेरे बाद मेरे घर के लोगों का क्या होगा” ऐसे डरावने विचार भी आने लगते है | “अब सबकुछ ख़त्म हो चुका है | कुछ भी हो सकता है” ऐसा महसूस होने लगता है | इन विचारों के साथ साथ, उस व्यक्ती के शरीर में लक्षण भी बढ़ने लगते है |
१) दिल की धड़कन और तेज होने लगती है |
२) हाँथ पैर काँपने लगते है |
३) एक हाथ या पैर कमजोर होते जा रहा है | शरीर से पुरी तरह से ताकद निकल गई है ऐसा महसूस होता है |
४) जबान भारी होने लगती है और बात करना मुश्किल हो जाता है |
५) सर में भारीपन और चक्कर जैसा लगता है | बैलेंस याने सिधा खड़े रहना मुश्किल होने लगता है |
६) पुरे शरीर से पसिना आना |
७) साँस लेने में परेशानी होना | साँस भारी हो जाना |
इन लक्षणों को देखकर व्यक्ति और भी डर जाता है | इन सभी लक्षणों के एपिसोड को ‘पैनिक एपिसोड’ कहते है |
प्र. ‘पैनिक एपिसोड होने की चिंता’ क्या है ? (Pre-occupation)
उ. जब एक बार व्यक्ति को ऐसा ‘पैनिक एपिसोड’ आ जाता है तब उसे अगली बार फिरसे ऐसा एपिसोड ना आ जाए ऐसा डर मन में बैठ जाता है |
उस एपिसोड के बाद पुरा शरीर का चेक अप कराने के बावजूद कोई रिपोर्ट जब ऐबनोर्मल या बिघडा हुआ नहीं निकलता, तब वह इन्सान और भी डर जाता है | उसे लगता है “यह एक ऐसी बिमारी मुझे हो गयी है जिसका किसी भी जाँच में निदान नहीं हो रहा है | इस बिमारी कि वजह से मुझे और भी धोका है |
जाँच कराने के लिए यह व्यक्ति विविध निष्णात डॉक्टर और तपास – जैसे ई.सी.जी., 2-D ECHO, एंडोस्कोपी, सोनोग्राफी, सी. टी. स्कैन, एम. आर. आई. इत्यादी इत्यादी कराता है |
उसे अब (१) घबराहट के एपिसोड में होने वाला डर और (२) फिरसे कभी भी वैसा एपिसोड हो जाएगा ये दुसरा डर सताने लगता है |
प्र. पैनिक डिसऑर्डर में बर्ताव में क्या बदल होता है ? (Behaviors changes in Panic Disorder)
उ. पैनिक डिसऑर्डर में त्रस्त होने वाला इन्सान अपना आत्मविश्वास खोने लगता है | जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है और अचानक कुछ भी हो सकता है ऐसा उसे डर लगने लगता है | रोज के काम के लिए ट्रेन से जाने को टालना; क्योंकी “ट्रेन में अचानक ऐसा एपिसोड हुआ तो मुझे कौन मदत करेगा” ऐसा डर उसे लगता है | यह व्यक्ती ज्यादा तर अपनी सेहत की चिंता में रहने लगता है और उसका अपने काम से ध्यान उड़ने लगता है | वह अपने नजदिकी रिश्तेदारों से कम बातचित करने लगता है | हँसना खेलना भूल जाता है | उसके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर बहुत बुरा असर पैनिक डिसऑर्डर का पडता है |
प्र. ‘पैनिक डिसऑर्डर’ होने के क्या कारण हो सकते है ?
उ. ‘पैनिक डिसऑर्डर’ होने का कोई एक ख़ास कारण नही होता | अलग अलग विविध कारणों के एक साथ उपस्थिति से ये डिसऑर्डर निर्माण होता है, या सामने आता है ऐसा मानना है | उस व्यक्ति का स्वभाव गुणधर्म अगर ज्यादा चिंता करने वाला या हर एक घटना को बहुत ही गहराई में जा कर सोचने वाला हो, थोड़ी थोड़ी बात में डर जाने वाला हो, नकारात्मक विचार करने की आदत वाला हो तो वह व्यक्ति पैनिक डिसऑर्डर से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है | ऐसे लोग गूगल youtube और अलग अलग जगह से बिमारिओं के बारे में जानकारी एक्कठी करते है और फिर उन बिमारियों को अपने आपमें देखने लगते है |
कभी कभी कोई तनाव की घटना ; जैसे किसी प्रिय, या पहचान के व्यक्ति की अचानक मौत ; अचानक किसी को हार्ट अटैक या लकवा आ गया है ऐसी जानकारी ; इत्यादी पैनिक एपिसोड के शुरू होने के या ; उसे ट्रिगर शुरुवात कर देने के कारणीभूत माने जाते है |
अगर फोन की घंटी बजी तो भी इन्हें ऐसा लगता है की कोई बुरी खबर सुनाने को मिलेगी |
कुछ लोगों में अनुवांशिकता भी देखी जाती है | मतलब माता – पिता या किसी सगे-संबंधी को ऐसी तकलिफ है और अनुवांशिकता की वजह से अगले पिढी में उतर आई है | लेकिन ये कुछ कुछ जगह ही ऐसा पाया जाता है |
प्र. ‘पैनिक डिसऑर्डर’ में दिमाग और शरीर में क्या बदल होता है ?
उ. पैनिक डिसऑर्डर मन में आने वाले डर से संबंधीत होने के वजह से मन में घबराहट, बेचैनी, नकारात्मकता निर्माण करने वाले – रसायन मस्तिष्क में बढ़ जाते है | व्यक्ति पुरा समय तणाव में रहने के वजह से उस व्यक्ति के शरीर में तणाव के रसायन ; याने ‘स्ट्रेस हार्मोन्स’ ज्यादा मात्रा में पाए जाते है | स्ट्रेस हारमोंस शरीर के विभिन्न भागों में कार्य करते है }
पेट पर काम करते है तब पेट का हाजमा ख़राब होता है , पेट साफ़ न होना या जुलाब होना , हाथ पैर और सर में भारीपन लगाना, पीठ दर्द होना | कई स्ट्रेस हारमोंस एलर्जी भी बढ़ाते है |
प्र. ‘पैनिक डिसऑर्डर’ का मेनेजमेंट कैसे किया जाता है ?
उ. पैनिक डिसऑर्डर में समुपदेशन (Counselling) और मानसोपचारतज्ञ द्वारा दि गयी दवाइयां दोनों भी असरदार होती है |
दवाइयां मस्तिष्क में बनने वाले घबराहट बेचैनी के रसायनों को कम करती है | जिस वजह से घबराहट वाले पैनिक एपिसोड धीरे धीरे आने बंद हो जाते है |
इसी के साथ दवाइयां मन की ताकद भी बढाती है | नकारात्मक विचार निर्माण करने वाले रसायनों को कम करती है | जिस वजह से उस व्यक्ति में सकारात्मक बदल होते है और आत्मविश्वास बढ़ने लगता है |
मानसिक समुपदेश (Counselling) कि मदत से उस व्यक्ति के गलत विचार करने के तरिके को बदला जाता है | उसके विचारों और संवेदनाओं के प्रति जो Reactions या देखने का ढंग है उस पर समुपदेशन किया जाता है | समुपदेशन एक वैद्न्यानिक पद्धति है जो व्यक्ति के मन को ज्यादा से ज्यादा अच्छी तरह से कैसे इस्तेमाल किया जा सके और तकलीफों को कैसे कम कर सकें ये सिखाती है |
मानसोपचार तज्ञ दवाइयां और समुपदेशन कि मदत से उन व्यक्ति को तकलिफ से बाहर निकाल सकता है |
प्र. क्या ‘पैनिक डिसऑर्डर’ की दवाई पुरी जिंदगी भर खानी पड़ती है ?
उ. ‘पैनिक डिसऑर्डर’ की दवाई पुरी जिंदगी भर खाने पड़ेगी ऐसा जरुरी नहीं |
दवाई एक निर्धारित समय तक दि जाती है | उसके बाद मानसोपचार तज्ञ उस व्यक्ति के पुरी तरह ठिक होने के बाद धीरे धीरे दवाइयां कम करते है और बंद करते है |
कुछ लोगों में उनके व्यक्तिमत्व में रहने वाली संभावना (Tendency) कि वजह से अगर उनमें लक्षण घबराहट के दिखे तो सिर्फ उन्हें ही दवाई आगे चालू रखनी पड़ती है | वह भी निर्धारित समय तक ही |
ऐसा आमतौर देखा जाता है, कि जो व्यक्ति अपने स्वभाव में और विचार में बदलाव लाते है | अपने बर्ताव में बदलाव लाते है उनकी दवाइयां बंद होने की संभावना अत्यंत अधिक होती है |
दवाइयों का कोर्स पूरा करने के बाद ज्यादा तर व्यक्तियों में आत्मविश्वास में वृद्धी होती है और बार बार (पैनिक) घबराहट के एपिसोड में जाने की संभावना कम होते हुए देखा जाता है |
संदेश : पैनिक डिसऑर्डर ठीक होने वाली बिमारी है | मानसोपचार तज्ञ की सलाह तुरंत ले |
इस लेख के लेखक डॉ. निशिकांत विभुते मानसोपचार तज्ञ है और कांदिवली, मुंबई में प्रैक्टिस
करते है | अपॉइंटमेंट लेने के लिए ९६१९५५०६५० इस नंबर पर फ़ोन करें |
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