लोगों
के सामने लिखने का डर
जब
किसीको लोगों के उपस्थिति में , या अगर
कोई इन्सान हमें देख रहा होता है तब लिखने के लिए डर लगता है .
हमारी कोई गलती हो जाएगी , सब लोग हसेंगे , या
चेक पर हस्ताक्षर गलत बनेगा और चेक पास नहीं होगा ऐसा डर लगता है तब वह व्यक्ति
ऐसी परिस्थिति टालने लगता है .
क्या यह हानिकारक है ?
यह उस व्यक्ति की पूरी क्षमता प्रकट करने में
दिक्कत लता है .
कई बार कार्पो रेट जगत में सबके सामने कुछ
समझाते वक्त बोर्ड पर लिखना जरुरी होता है , लेकिन अगर यह डर उस व्यक्ति के मन में
बसा हो तो वह उस सुवर्ण अवसर को गवां बैठ सकता है . वह ऐसी परिस्थितियाँ टालते
रहता है .. चेक पर गलत हस्ताक्षर करने का डर
व्यक्ति को अचानक कही जरुरत पड़ने पर चेक
देने के लिए मुश्किल खडा कर देता है .
यह क्यों होता है ?
अतिभय याने फोबिया के साधारणतः दो कारण होते है –
१)
मानसिक (PSYCHOLOGICAL)
२)
जैविक/मनोशारीरिक
(BIOLOGICAL)
ये दोनों कारण एक इन्सान में
कम ज्यादा मात्रा में उपस्थित रहते है तब फोबिया के लक्षण दीखने लगते है .
१)
मानसिक – Psychological
जब बचपन में उस व्यक्ति को उसके खराब अक्षर के
कारण , या धीमे लिखने के कारण या फिर बात करने के तरीके के कारण , उसके परिवार
जनों से , या मित्रजनों से आलोचित (criticise )किया जाता है , उसके किसी बर्ताव का
मजाक उड़ाया जाता है .
उसकी गलती की उसे जब सजा मिलाती है तब वह सजा
उस व्यक्ति के मन में घर कर जाती है . उसे गलती कर बैठने का डर हमेशा बना रहता
है . उस वजह से वह व्यक्ति ऐसे कार्य टालने लगता है जिसमे उसे आलोचना का या
, बड़ी सजा मिलाने का डर रहता है.
यह टालना , उसके मन का डर बढाते रहता है . लेकिन
आगे चलके जब उसे लोगों के सामने बोलने या लिखने का मौका मिलता है तब यही डर उसे
लोगों के सामने लिखने में तकलीफ लाता है .
डर के मरे हाथ कापने लगते है , और हस्ताक्षर ठीक
से नहीं होते . और डर वापस बढ जाता
है .
2)मनोशारीरिक / जैविक Biological
फोबिया
याने अतिभय जैसी तकलीफे मष्तिष्क में कुछ
रसायनों की कमी से भी होती है . सेरोटोनिन
, एपिनेफ्रीन और डोपामिन जैसे नूरो ट्रांस्मिटर
(Neuro-Transmitters) के कम या अधिक मात्रा में होने से व्यक्ति में फोबिया जैसी तकलीफे हो सकती है .
उपाय / Treatment
मानसिक – परामर्श ( Counselling )
कौंसेलिंग
फोबिया में काही राहत दे सकती है .
काउंसलर
व्यक्ति के मन में छिपे हुए डर को ढूंड कर सामने लेन में उस व्यक्ति को मदत
कर सकते है . उस डर के साथ हमारे मन में
चलनी वाली अनेक गलत विचार धारणाओं को सामने
लाने और उसे समझने में , तथा उसे
बदलने में काउंसलर मदद करते है . धीरे धीरे नयी विचार धारानाये निर्माण होकर
इंसान के बर्ताव में , घबराहट में बदलाव आ सकते है .
दवाई ( Medicines )
दवाइयाँ मस्तिष्क में रहने वाली रसायनों की कमी
की पूर्ती करने के लिए काफी मदददगार होती
है .
मस्तिष्क रहने वाली कमजोर कोशिकाओं को दवाइयां
सक्रीय कराती है और उस वजह से रसायन ( न्यूरो-ट्रांस्मिटरस
) योग्य मात्रा में प्रवाहित होने लगते है . व्यक्ति के भय के लक्षण कम होने लगते
है . घबराहट से बाहर निकलनेके लिए लगनी
वाली ऊर्जा बढ़ने लगाती है .
काउंसलिंग
और बर्ताव में सुधार ( Behaviour
Therapy ) को जीवन में उतारने के लिए दवाइयां मदद कराती है .
घबराहट होना बंद होने के कुछ समय बाद डॉक्टर
दवाई बंद कर सकते है . ये दवाइयाँ आदत डालने वाली (एडिक्टिव / Addictive ) नहीं
होती .
अगर हम हमारे मन में होने
वाले विचार और डर को समझे , और सही परामर्श एंव उपचार ले तो यह ग्राफो -फोबिया ठीक हो सकता है .
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